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चेतन और वृत्तियों का अन्योन्याश्रित सम्बन्ध है जैसे दूध और पानी। दूध में से जो दूध का द्रवत्व है उसे निकाल दिया जाये, तो दूध-दूध न रह कर दूध का पाउडर या पनीर या खोया कहलायेगा। मन तो रहे और वृत्ति न रहे यह संभव नहीं है, क्योंकि वृत्तियों के निरंतर प्रवाह का नाम ही तो मन है।
हरि ॐ !

 

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