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शरीर, इंद्रियाँ, मन, बुद्धि, और अहंकार ये सब प्रकृति के कार्य हैं और नश्वर हैं। इनमें जो शुद्ध चैतन्य प्रकाशित हो रहा है वही आत्मा है। प्रकृति तत्व के कारण आत्मा सीमित और व्यक्तिनिष्ठ प्रतीत होता है। साक्षीभाव में स्थिति ही पुरुष को आत्मबोध कराती है।
हरि ऊँ !