को वा ज्वरः प्राणभृतां हि चिन्ता मूर्खोऽस्ति को यस्तु विवेकहीनः ।
कार्या मया का शिव विष्णु भक्तिः किं जीवनं दोष विवर्जितं यत् ॥
(प्राणियों के लिये वास्तव में ज्वर क्या है ? चिंता । मूर्ख कौन है ? जो विवेक (विचार) हीन है। करने योग्य प्यारी क्रिया क्या है ? शिव (गुरु) और विष्णु की भक्ति । वास्तव में जीवन कौन सा है ?
जो सर्वथा निर्दोष है।)
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