मैं आकाश के सदृश अनंत हूँ और यह जगत घड़े के सदृश महत्त्वहीन है, इस ज्ञान का न त्याग करना है और न ही ग्रहण, बस इसी ज्ञान के साथ एक रूप हो जाना है।
हरि ॐ !
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