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इस जगत में परमार्थतः कुछ भी नहीं है, यह केवल भावना मात्र है । जो पदार्थ भाव और अभाव के रूप में स्वभावतः स्थित हैं उन पदार्थों का कभी अभाव नहीं हो सकता ।

हरि ऊँ ! 

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