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हमारा न तो स्वतः नाश है न परतः नाश है और न ही स्व आश्रय के नाश होने से नाश है। हम अधिष्ठान हैं और यह शरीर, इन्द्रियां, मन, प्राण आदि सब मुझ आत्मा पर अध्यस्त हैं।

हरि ऊँ !

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