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अनुभव के बिना जगत की सत्ता ज्ञात नहीं होती। जड़ जगत का अनुभव चेतना के बिना संभव नहीं है। जड़ चेतन का सम्बन्ध अभ्यास के बिना नहीं हो सकता। अतः मैं चेतन अद्वितीय हूँ।
हरि ऊँ!

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