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हम जिस ब्रह्म से उत्पन्न हुये हैं, जब तक उससे हमारा साक्षात्कार नहीं हो जाता, तब तक जन्म – मरण का चक्कर चलता रहता है। स्वयं की ब्रह्म से भिन्नता ही हमारा अज्ञान है।

हरि ऊँ ! 

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