अहंकार दो तरह का होता है –
(१) साक्षी अहं
(२) अहं वृत्ति
(१) साक्षी अहं : जो चेतना बिना किसी इन्द्रिय की सहायता लिये बिषयों को सीधे प्रकाशित करती है, उसे ‘साक्षी’ कहते हैं।
(२) अहं वृत्ति : जो व्यावहारिक ‘मैं’ प्रतिदिन के अनुभव में आता है जैसे – मैने यह किया तथा जो सारे व्यवहार का केन्द्र है। यह ही है ‘अशुद्ध अहं’। इसे ‘वृत्त्यात्मक अहं’ भी कहते हैं।
हरि ऊँ !
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