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अहम् भाव के कारण ही हम स्वरुप से अनभिज्ञ रहते हैं। इस अहम् के मिट जाने पर, इसके नष्ट हो जाने पर हम अपने स्व-स्वरुप में स्थित हो जाते हैं। स्व-स्वरुप की स्थिति प्राप्त होने पर हम कर्त्तापन तथा भोक्तापन से दूर हो जाते हैं। हरि ॐ !