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अहंकार के प्रकार

अहंकार तीन प्रकार का होता है –

(१) सात्विक अहंकार (२) राजस अहंकार (३) तामस अहंकार

(१) सात्विक अहंकार : इसमें सतो गुण की प्रधानता होती है। समष्टि रूप में यह मन और

पंच कर्मेन्द्रियों को उत्पन्न करता है और व्यष्टि रूप में यह शुभ कर्मों को उत्पन्न करता है।

(२) राजस अहंकार : इसमें रजो गुण की प्रधानता होती है। समष्टि रूप में यह सात्विक और तामस अहंकार को शक्ति देता है और व्यष्टि रूप में यह अशुभ कर्मों को उत्पन्न करता है।

(३) तामस अहंकार : इसमें तमो गुण की प्रधानता होती है। समष्टि रूप में यह पंच तन्मात्राओं को उत्पन्न करता है और व्यष्टि रूप में यह प्रमाद, आलस्य, विषादादि को उत्पन्न करता है।

हरि ऊँ !

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