अहं हरे तव पादैकमूलदासानुदासो भवितास्मि भूयः ।
मनः स्मरेतासुपतेर्गुणांस्तेगृणीत वाक् कर्म करोतु कायः ॥
(प्रभो ! आप मुझ पर ऐसी कृपा कीजिये कि अनन्यभाव से आपके चरण कमलों के आश्रित सेवकों की सेवा करने का अवसर मुझे अगले जन्म में भी प्राप्त हो। प्राण बल्लभ ! मेरा मन आपके मंगलमय गुणों का स्मरण करता रहे, मेरी वाणी उसीका गान करे और शरीर आपकी सेवा में ही संलग्न रहे।।)
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