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जिस प्रकार सम्पूर्ण भुवनों में प्रविष्ट हुआ एक ही अग्नि प्रत्येक रूप (रूपवान वस्तु) के अनुरूप हो जाता है । उसी प्रकार सम्पूर्ण भूतों का एक ही अंतरात्मा उनके अनुरूप भी होता है और उनके बाहर भी होता है ।

हरि ऊँ !

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