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सारे प्राणी जिसमें स्थित हैं और सारे प्राणियों में जो स्थित है वो ‘मैं’ हूँ। वो “आत्मा” मैं हूँ। जैसे सारे घड़ों में मिट्टी है और मिट्टी में हीं घड़ा है। सारी तरंगों में जल है और जल में ही सारी तरंगें हैँ। इसको कहते हैं अन्वय और व्यतिरेक।

हरि ॐ !

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