ezimba_new_lo
अशुद्ध अहं में तीन दोष रहते हैं –
(१) परिणाम
(२) परिच्छेद
(३) परिताप ।
(१) परिणाम : किन्हीं वस्तुओं या बातों में भूत और वर्तमान की अवस्था में देखा सुना हुआ अन्तर परिणाम कहलाता है। सांख्य दर्शन के अनुसार परिणाम वस्तुतः प्रकृति का मुख्य गुण या स्वभाव है। जैसे दधि (दही), दूध का परिणाम है।
(२) परिच्छेद : सीमा में बंधी हुई अर्थात सीमित। शुद्ध अहं सर्वव्यापक है जबकि वृत्त्यात्मक अहं सीमित है।
(३) परिताप : अत्यधिक ताप जिससे वस्तुएं जलने या झुलसने लगे। वृत्त्यात्मक अहं दैहिक, दैविक, भौतिक तीनों तापों से परेशन होता है।
हरि ऊँ !

Menu
WeCreativez WhatsApp Support
व्हाट्सप्प द्वारा हम आपके उत्तर देने क लिए तैयार हे |
हम आपकी कैसे सहायता करे ?