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व्यष्टि में एक जीव की सत्ता “आत्मा” है और (ब्रह्माण्ड) समष्टि में उसी सत्ता का नाम “ब्रह्म” है। सत्‍य तो एक ही है। जगत की पृथक सत्ता नहीं है। जगत उस ब्रह्म पर ही अध्यस्त है।

हरि ऊँ !

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