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आत्मा ही सुनने के योग्य है, आत्मा ही मनन करने के योग्य है। आत्मा ही मुक्ति को देने वाली और सभी को उत्पन्न करने वाली है। इसलिए, प्रयत्नपूर्वक आत्मा का सेवन करना चाहिए। हरि ॐ !