यह संपूर्ण चराचर जगत आत्मा से ही उत्पन्न है जिस प्रकार घड़े के भीतर और बाहर आकाश विद्यमान रहता है, वैसे ही आत्मा भी ब्रह्मांड के भीतर-बाहर पूर्ण रूप से व्याप्त रहती है।
हरि ॐ !
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