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विशुद्ध-चित्त, आत्म-ज्ञानी, मन से जिन-जिन लोकों की भावना करता है और जिन-जिन भोगों को चाहता है, वह उन्हीं-उन्हीं लोकों और उन्हीं-उन्हीं भोगों को प्राप्त कर लेता है।
हरि ऊँ !

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