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महात्मानस्तु मां पार्थ दैवीं प्रकृतिमाश्रिताः ।
भजन्त्यनन्यमनसो ज्ञात्वा भूतादिमव्यम् ॥
(हे पृथापुत्र (अर्जुन) ! दैवी स्वभाव को धारण करके महात्मा गण (महापुरुष) मेरी शरण ग्रहण करते हैं, और मुझको सभी जीवात्माओं का उद्गम जानकर अनन्य-भाव से मुझ अविनाशी का स्मरण करते हैं।)