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जाग्रत, स्वप्न और सुषुप्ति ये तीनों अवस्थायें मन की हैं। चेतन की नहीं। आत्मा कर्षापण के चतुर्थांश-वत है। विश्व, तैजस, प्राज्ञ मन की वृत्तियां या अवस्था हैं, आत्मा की नहीं। आत्मा, माया संख्यां से रहित तुरीय है।
हरि ॐ !

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