स्थूल शरीर जीवात्मा का भोगायतन है। जैसे गृहस्थ घर में रहता है, वैसे ही जीवात्मा इस स्थूल शरीर में रहता है। जैसे घर, ईंट, पत्थर, लोहा, सीमेंट, लकड़ी आदि से बना होता है और उन्हीं का है। गृहस्थ केवल व्यवहार के लिये उसे अपना (मेरा) कहता है उसी प्रकार यह स्थूल शरीर भी पञ्च महाभूतों से बना है, अतः उन्हीं का है।
हरि ऊँ !
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