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श्लोकार्धेन प्रवक्ष्यामि यदुक्तं ग्रंथ कोटिभ:।
ब्रह्म सत्यं जगन्मिथ्या जीवो ब्रह्मैव नापर:।।
जो विभिन्न ग्रंथों में कहा गया है, उसे (मैं) यहाँ आधे श्लोक में कह रहा हूँ – “ब्रह्म सत्य है, जगत मिथ्या है तथा जीव ब्रह्म ही है, कोई दूसरा नहीं”।
हरि ऊँ !
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