‘ब्रह्मज्ञानी’ ‘आत्मा’ को ही ‘ब्रह्म’ का रूप जानता है और अज्ञानी मनुष्य हृदय में बसने वाले इस ‘ब्रह्मरूपी आत्मा’ को नहीं जान पाता।
हरि ॐ !
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