ब्रह्मात्मैक्य बोध ही जीव का परम लक्ष्य है। जीव जब तक ये नहीं करेगा तब तक वो मुक्त नहीं हो सकता। आत्मज्ञान एक साधन है, एक पड़ाव है, एक ठहराव है पर पहुँचना हमें ब्रह्म तक है। ब्रह्म ही इस सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड का अधिष्ठान है। ब्रह्म और आत्मा अलग – अलग नहीं हैं, बल्कि एक हैं।
हरि ॐ !
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