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ममता, आसक्ति और अपनेपन के भाव से आवृत्त होकर यह बुद्धि क्रीडा करती है। अपनों से ममता और देह में अहंता ये ही जीव को बंधन में डालने वाले हैं।
मान – अपमान यह बुद्धि ही उठाती है। सारी आपदाओं की जड़ यह बुद्धि ही है।
हरि ऊँ!

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