ezimba_new_loचेतन (आत्मा) किसी भी क्रिया का किंचिन्मात्र भी कर्ता नहीं है। जैसे (जड़) प्रकृति कभी अक्रिय नहीं रहती वैसे ही चेतन में कभी क्रिया नहीं होती।
हरि ऊँ !

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