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शरीर का रूप आकार अग्नि तत्व का दिया हुआ है। इसीलिये इसकी उत्पत्ति अग्नि से हुई और परिणति भी अग्नि में हुई। रूप ही रूप में अर्थात अग्नि ही अग्नि में समा जाती है। अतः यह देह मैं नहीं हूँ और न ही यह मेरी है।
हरि ऊँ!