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यह सारा जगत मुझ आत्मा पर (वैसे) आभासित हो रहा है जैसे बादलों के बीच में हाथी दीखता है। मैं सत्, चित् आनंद रूप हूँ अतः ब्रह्म हूँ। नाम, रूप (आदि) गंधर्व नगर की तरह से कल्पित हैं।
हरि ऊँ !

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