गीता मे हृदयं पार्थ गीता मे सारमुत्तमम्।
गीता मे ज्ञानमत्युग्रं गीता मे ज्ञानमव्ययम्॥
गीता मे चोत्तमं स्थानं गीता मे परमं पदम्।
गीता मे परमं गुह्यं गीता मे परमो गुरुः॥
{हे पार्थ (अर्जुन) ! गीता मेरा हृदय है। गीता मेरा उत्तम सार है। गीता मेरा अति उग्र (श्रेष्ठ) ज्ञान है। गीता मेरा अविनाशी ज्ञान है। गीता मेरा उत्तम निवास स्थान है। गीता मेरा परम पद है। गीता मेरा परम रहस्य है। गीता मेरा परम गुरु है।}
गीताश्रयेऽहं तिष्ठामि गीता मे चोत्तमं गृहम्।
गीताज्ञानमुपाश्रित्य त्रींल्लोकान्पालयाम्यहंम्॥
{मैं (श्री)गीता(जी) के आश्रय में रहता हूँ। (श्री)गीता मेरा उत्तम घर है और (श्री)गीता(जी) के ज्ञान का आश्रय लेकर मैं तीनों लोकों का पालन करता हूँ।}
आज मार्गशीर्ष शुक्ल एकादशी है। ब्रह्म पुराण के अनुसार आज के दिन का बहुत बड़ा महत्व है। भगवान श्रीकृष्ण ने द्वापर युग में आज के ही दिन अर्जुन को श्रीमद्भगवद् गीता का उपदेश दिया था। इसीलिए आज की यह तिथि गीता जयंती के नाम से भी लोक विख्यात है।
आप सभी को पावन गीता जयंती की हार्दिक शुभ कामनाएं !………
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