‘आचार्यं मां विजानीयात्’ गुरु को मेरा रूप ही जानो अर्थात् गुरु और भगवान् में कोई भेद नहीं है। जो गुरु-वचनों में दृढ़ विश्वास रखता है, गुरुदेव जिसपर प्रसन्न रहते हैं, उसे कोई विघ्न नहीं घेरते। गुरु माता-पिता-पति सब हैं, उनके बिना संसार में कहीं गति नहीं। गुरु सर्वशक्तिमान और वाँछाकल्पतरु हैं।
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