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मातृवत् लालयित्री च, पितृवत् मार्गदर्शिका।
नमोऽस्तु गुरुसत्तायै, श्रद्धा-प्रज्ञा युता च या॥
[जो माँ कीभाँति लालन (प्रेम) करती है और पिता की भाँति (पालन) मार्गदर्शन करती है, ऐसी प्रज्ञा और श्रद्धा से युक्त ‘गुरुसत्ता‘ को हम बारंबार प्रणाम करते हैं।]