Swami

उत्तिष्ठत  जाग्रत  प्राप्य  वरान्निबोधत।

क्षुरस्य धारा निशिता दुरत्यया दुर्गं पथस्तत्कवयो वदन्ति ॥

{(हे मनुष्यों !) उठो, जागो (अपनी चेतना में लौट आओ)। श्रेष्ठ (ज्ञानी) पुरुषों के सान्निध्य में ज्ञान प्राप्त करो। विद्वान् मनीषियों के मतानुसार – ज्ञान प्राप्ति का वह पथ, छुरे (चाकू) की तीक्ष्ण धार पर चलने जैसा ही दुर्गम है।}

Menu
WeCreativez WhatsApp Support
व्हाट्सप्प द्वारा हम आपके उत्तर देने क लिए तैयार हे |
हम आपकी कैसे सहायता करे ?