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कामान्निष्कामरूपी संश्चरत्येकचारो मुनिः।
स्वात्मनैव सदा तुष्टः स्वयं सर्वात्मना स्थितः॥ 

[ज्ञानी पुरुष, आत्म स्वरूप में सदा संतुष्ट होकर और सर्वात्म स्वरूप होकर, निष्काम भाव से सब काम भी करते हैं और अपने ब्रह्म पद में ही मग्न रहते हैं।]

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