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इच्छाऐं दो प्रकार की होती हैं – (१) स्वार्थ प्रेरित इच्छा  (२) परमार्थ  प्रेरित इच्छा । स्वार्थ प्रेरित इच्छा ही उत्थान के रास्ते में बाधक बनती है । कर्म स्वार्थ प्रेरित इच्छा से न होकर कुछ देने के भाव से होना चाहिये ।

हरि ॐ !

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