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जिस प्रकार ईश्वर इस जगत की उत्‍पत्ति, स्थिति, लय करता है उसी प्रकार मैं भी इस संसार की  उत्‍पत्ति, स्थिति, लय करता हूँ। दोनों की अपनी-अपनी उपाधि है। ईश्वर की माया उपाधि है तो जीव की अविद्या उपाधि है। उपाधि में आया हुआ चेतन ही किसी कार्य को कर सकता है । 

हरि ऊँ !

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