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श्रुति प्रमाणों से इस जगत को माया से ही विलसित जान कर योगीजन आत्मा में ही लीन रहते है। आत्मा द्वारा माया की उपाधि को जीत कर माया रहित हो जाने पर अखंड ज्ञानरूप विशुद्ध, ब्रह्म की प्रतीति होती है।
हरि ॐ !

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