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मैं ही इस जगत का कारण हूं और इसको जानने वाला हूं। यह जगत है क्या? ज+ग+त। ‘ज’ से जायते, ‘ग’ से गच्छति, ‘ति’ से तिष्ठति। जो पैदा होता है, आगे गति करता है लेकिन स्थित हुआ सा लगता है ।

हरि ॐ !

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