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जब तक प्राण चल रहे हैं तब तक जीव बँधा हुआ है। जब तक जीव के भीतर में पाँच महाभूत हैं, वह फँसा पड़ा हुआ है। इन्द्रियां हैं तो फँसी हैं। यहाँ पर जीव कुछ न कुछ कर्म करता रहता है और फंसता रहता है। हरि ॐ !