सद्गुरु की देख रेख में पूजा,जप तथा चिंतन का अभ्यास दीर्घ काल तक करते रहने से साधक के हृदय में परमात्मा प्रकट हो जाते हैं। प्रारम्भिक दौर में चित्त शुद्धि होती है, फिर धीरे – धीरे मन शांत और संतुलित होकर विकारों से रहित हो जाता है और अंत में वह आत्मा और परमात्मा के एकत्व का अनुभव प्राप्त कर लेता है, जोकि जीवन का परम लक्ष्य है।
हरि ऊँ !
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