जितात्मनः प्रशान्तस्य परमात्मा समाहितः।
शीतोष्णसुखदुःखेषु तथा मानापमानयोः॥
(जिसने अपनी इंद्रियों को नियंत्रित कर लिया है और जिसके अंतःकरण की वृत्तियाँ भलीभाँति शांत हैं, उसका मन सरदी- गरमी, सुख- दुःख और मानापमान में निरंतर सच्चिदानंदघन परमात्मा में ही स्थिर रहता है।)
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