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आत्मा में सर्वप्रथम अविद्या की कल्पना हुई। कल्पित अविद्या से जीव बना, फिर अन्तःकरण  चतुष्टय फिर देह। यह सब कल्पना मात्र है। कल्पना में परिवर्तन से अधिष्ठान पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता। 

हरि ऊँ ! 

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