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यह सृष्टि कर्मबंधन से युक्त है। इसका तात्पर्य यह है कि संसार में मनुष्य जो कुछ भी कर्म करता है, उनके फल का भोग किये बिना उसे संसार के बंधन से छुटकारा नहीं मिलता। हरि ॐ!