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राग द्वेष और संकल्पों से मुक्त, आत्मज्ञानी मनुष्य निष्काम अवस्था को प्राप्त होता है।परमात्मा के लिये कर्म करने वाले मनुष्य के लिये कर्म−बन्धन नहीं है, ईश्वर−बुद्धि से कर्म करते रहने से उसका चित्त शुद्ध हो जाता है।                                                                          हरि ऊँ !  

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