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जीव के भीतर “मूला” अविद्द्या है और बाहर “तूला” अविद्द्या है। मैं साक्षी ब्रह्म हूँ – यह न जानना “मूल अज्ञान” है। “मैं” अमुक बिषय को नहीं जानता – इस अज्ञान में बिषय का अज्ञान है इस अज्ञान को “तूलाविद्द्या” कहते हैं।

हरि ऊँ ! 

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