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चौरासी लाख योनियों के पश्चात यह शरीर मिला है। अतः अनेक जन्मों के अभ्यास से शरीर का तादात्म्य हो गया है। इसी की निवृत्ति के लिये निदिध्यासन करना जरूरी है।
हरि ऊँ !