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सांख्यनिष्ठा ज्ञान योग के साधन से होती है और योगनिष्ठा कर्मयोग के साधन से होती है। कर्तव्य कर्मो का स्वरूप-त्याग, किसी भी निष्ठा का हेतु नहीं है। 

हरि ऊँ !

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