बुभुक्षुरिह संसारे मुमुक्षुरपि दृश्यते। भोगमोक्षनिराकांक्षी विरलो हि महाशयः॥ (इस संसार में भोग और मोक्ष की इच्छा वाले बहुत से...
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Yagya (यज्ञ)
सहयज्ञाः प्रजाः सृष्टा पुरोवाचप्रजापतिः । अनेन प्रसविष्यध्वमेष वोऽस्त्विष्टकामधुक् ॥ (प्रजापति ब्रह्मा ने कल्प के आदि में यज्ञ सहित प्रजाओं को...
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Ananya Bhakti (अनन्य भक्ति)
भक्त्या त्वनन्यया शक्य अहमेवंविधोऽर्जुन ज्ञातुं द्रष्टुं च तत्वेन प्रवेष्टुं च परन्तप ॥ {हे परंतप (अर्जुन) ! मैं अनन्य भक्ति के द्वारा भी इस...
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Vishnu ki bhakti (विष्णु की भक्ति)
को वा ज्वरः प्राणभृतां हि चिन्ता मूर्खोऽस्ति को यस्तु विवेकहीनः । कार्या मया का शिव विष्णु भक्तिः किं जीवनं दोष विवर्जितं...
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Maheshwar (महेश्वर)
भोक्तारं यज्ञतपसां सर्वलोकमहेश्वरम् । सुहृदं सर्वभूतानां ज्ञात्वा मां शान्तिमृच्छति ॥ (मुझे यज्ञ और तपों का भोगने वाला, सर्व लोकों का...
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Samabhav (समभाव)
इहैव तैर्जितः सर्गो येषां साम्ये स्थितं मनः। निर्दोषं हि समं ब्रह्म तस्माद् ब्रह्मणि ते स्थिताः॥ (जिनका मन समभाव में स्थित...
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Jitendriya (जितेन्द्रिय)
जितात्मनः प्रशान्तस्य परमात्मा समाहितः। शीतोष्णसुखदुःखेषु तथा मानापमानयोः॥ (जिसने अपनी इंद्रियों को नियंत्रित कर लिया है और जिसके अंतःकरण की वृत्तियाँ...
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Chetan (चेतन)
चेतन (आत्मा) किसी भी क्रिया का किंचिन्मात्र भी कर्ता नहीं है। जैसे (जड़) प्रकृति कभी अक्रिय नहीं रहती वैसे ही...
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Gita Jayanti (गीता जयंती)
गीता मे हृदयं पार्थ गीता मे सारमुत्तमम्। गीता मे ज्ञानमत्युग्रं गीता मे ज्ञानमव्ययम्॥ गीता मे चोत्तमं स्थानं गीता मे परमं...
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Avidya Nivritti (अविद्या-निवृत्ति)
अविद्या-निवृत्ति के लिए एक क्षण के लिए जो सद्गुरु के अनुग्रह की वृष्टि है, एक क्षण का जो सद्गुरु-समागम है...
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Jagat ki Anityata (जगत की अनित्यता)
जगत् की कुछ वस्तुयें अनित्य लगती हैं। कुछ वस्तुयें विकारी और कुछ वस्तुयें शास्त्र प्रमाण से नश्वर हैं। इससे सिद्ध है कि यह...
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Param Brahm (परं ब्रह्म)
भावाभावविनिर्मुक्तं नाशोत्पत्तिविवर्जितम्। सर्वसङ्कल्पनातीतं परं ब्रह्मं तदुच्यते।। (भाव अथवा अभाव से जो मुक्त है, नाश और उत्पत्ति से जो रहित है। जो सभी संकल्पों से (अतीत) परे है, उसे ही पर (परं) ब्रह्म कहा जाता है।) हरि ऊँ !
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Param Purush (परम पुरुष)
वह पुरुष ही भूत, भविष्य और वर्तमान है, वह ही शाश्वत है, वह स्वयं को अप्रकट से प्रकट करता है।...
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Sarvottam Gyan (सर्वोत्तम ज्ञान)
सबसे महान धर्म दया है, सबसे बड़ा बल क्षमा है, सबसे उत्तम व्रत सत्य है और परमात्म तत्व का ज्ञान ही सर्वोत्तम ज्ञान है। हरि ऊँ!
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Vedant Darshan (वेदांत दर्शन)
वेदांत दर्शन भ्रान्ति और दुख से मुक्ति हेतु विचार और विवेक का मार्ग प्रशस्त करता है। विवेक बुद्धि सत और असत...
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Sakshi Bhav (साक्षी भाव)
शरीर, इंद्रियाँ, मन, बुद्धि, और अहंकार ये सब प्रकृति के कार्य हैं और नश्वर हैं। इनमें जो शुद्ध चैतन्य प्रकाशित...
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Sharir Sambandhi Tap (शरीर संबंधी तप)
देवता, ब्राह्मण, गुरु और विद्वजनों का पूजन, पवित्रता, सरलता, ब्रह्राचर्य और अहिंसा, ये शरीर संबंधी तप कहे जाते हैं। हरि...
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Paramatma ki Ekata ka Bodh (परमात्मा की एकता का बोध)
वदन्तुशास्त्राणि यजन्तु देवान् कुर्वन्तु कर्माणि भजन्तुदेवता:। आत्मैक्यबोधेनविना विमुक्तिर्न सिध्यतिब्रम्हशतान्तरेsपि ॥ (कोई व्यक्ति भले ही शास्त्रों की व्याख्या करे, देवताओं का यजन करे, अनेकानेक शुभ कर्म...
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Brahmapad (ब्रम्हपद)
ब्रम्ह और आत्मा के अभेद का ज्ञान ही भवबन्धन से मुक्त होने का कारण है, जिसके द्वारा बुद्धिमान पुरुष अद्वितीय आनन्दरूप...
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