इस नश्वर जगत में तो सूर्य, चन्द्रमा, आदि का जड़ प्रकाश है । अग्नि में लोहा डालने पर जिस प्रकार...
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Chatushloki Bhagawat ॥चतुःश्लोकी भागवत॥
श्रीभगवानुवाच अहमेवासमेवाग्रे नान्यद् यत् सदसत् परम्। पश्चादहं यदेतच्च योऽवशिष्येत सोऽस्म्यहम् ॥(१) ( श्री भगवान कहते हैं - सृष्टि के आरम्भ होने...
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Gyani Purush (ज्ञानी पुरुष)
कामान्निष्कामरूपी संश्चरत्येकचारो मुनिः। स्वात्मनैव सदा तुष्टः स्वयं सर्वात्मना स्थितः॥ [ज्ञानी पुरुष, आत्म स्वरूप में सदा संतुष्ट होकर और सर्वात्म स्वरूप...
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Anany Bhav (अनन्यभाव)
अहं हरे तव पादैकमूलदासानुदासो भवितास्मि भूयः ।मनः स्मरेतासुपतेर्गुणांस्तेगृणीत वाक् कर्म करोतु कायः ॥(प्रभो ! आप मुझ पर ऐसी कृपा कीजिये...
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Man, Buddhi aur Atma (मन बुद्धि और आत्मा)
हमारी यह आत्मा, शरीर रूपी रथ पर सवार है। हमारी बुद्धि सारथी है, हमारा मन लगाम है। हमारी इन्द्रियाँ घोड़े...
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Guru Kripa (गुरु कृपा)
गुरु कृपा, भक्ति का सशक्त एवं समर्थ साधन है। गुरु कृपा से ही भगवदनुग्रह प्राप्त होता है। काल, कर्म और स्वभाव...
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Satoguni Kamana (सतोगुणी कामना)
सतोगुणी कामना से, हमारा संसार से राग कम होने लगता है, राग कम होने से सांसारिक दुःख कम हो जाता है...
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Agyan (अज्ञान)
हम जिस ब्रह्म से उत्पन्न हुये हैं, जब तक उससे हमारा साक्षात्कार नहीं हो जाता, तब तक जन्म - मरण...
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Ishwar aur Jeev (ईश्वर और जीव)
माया में प्रतिविम्बित ब्रह्म ही ईश्वर है और अज्ञान में प्रतिविम्बित ब्रह्म ही जीव है। हरि ॐ !
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Jeev (जीव)
जल का कोई आकार नहीं होता।.....लेकिन जल का गुण है, जल का गुण शीतलता है, जल का गुण मधुरता है। जल सगुण है लेकिन निराकार है। इसी...
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Atma (आत्मा)
शरीर, इंद्रियाँ, मन, बुद्धि, और अहंकार ये सब प्रकृति के कार्य हैं और नश्वर हैं। इनमें जो शुद्ध चैतन्य प्रकाशित...
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Sukh aur Anand (सुख और आनंद)
सुख एक प्रकार की अनुकूल संवेदना है, जो सदा पराश्रित, स्थान, वस्तु अथवा व्यक्ति सापेक्ष होता है। दूसरे शब्दों में...
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Do Awasthayen (दो अवस्थाएँ)
मन की शांति और स्वयं पर नियंत्रण इन दो अवस्थाओं के द्वारा हम इंद्रियों के बहिर्मुखी स्वभाव और मन- बुद्धि की बहिरंग प्रधान प्रवृत्तियों...
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Sookshma Atma (सूक्ष्म आत्मा)
जब मन दूर अवस्थित ब्रह्मलोक जैसे लोकों की ओर तेजी से चलता है तो वह शुद्ध चैतन्य स्वरूप आत्मा को वहाँ पहले से ही...
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Gurusatta (गुरुसत्ता)
मातृवत् लालयित्री च, पितृवत् मार्गदर्शिका। नमोऽस्तु गुरुसत्तायै, श्रद्धा-प्रज्ञा युता च या॥ [जो माँ की भाँति लालन (प्रेम) करती है और पिता की भाँति (पालन) मार्गदर्शन करती है, ऐसी प्रज्ञा और श्रद्धा से युक्त 'गुरुसत्ता' को हम बारंबार प्रणाम करते हैं।]
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Nishtha (निष्ठा)
सांख्यनिष्ठा ज्ञान योग के साधन से होती है और योगनिष्ठा कर्मयोग के साधन से होती है। कर्तव्य कर्मो का स्वरूप-त्याग, किसी...
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Bhagawan (भगवान्)
ऐश्वर्य, धर्म, यश, लक्ष्मी, ज्ञान और वैराग्य - इन गुणों को अपने में धारण करने वाले को भगवान् कहते हैं। ...
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Tyag (त्याग)
त्याग बोध का परिणाम है। जो अंतस् में घटित होता है, बोध के बिना त्याग केवल आडम्बर मात्र है। हरि...
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Gyan ki Saat Bhumikayen (ज्ञान की सात भूमिकायें)
ज्ञानभूमिः शुभेच्छाख्या प्रथमा परिकीर्तिता। विचारणा द्वितीया स्यात्तृतीया तनुमानसा।। सत्त्वापत्तिश्चतुर्थी स्यात्ततोऽसंसक्तिनामिका। पदार्थाभावनी षष्ठी सप्तमी तुर्यगा स्मृता।। शुभेच्छा, (सु)विचारणा, तनुमानसा, सत्वापत्ति, असंसक्ति, पदार्थाभावनी...
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Chitt Shuddhi (चित्त शुद्धि)
आत्म प्राप्ति के लिये चित्त शुद्धि आवश्यक है। निष्काम कर्म एवं धर्माचरण से चित्त शुद्धि होती है। संतों के आश्रय में चित्त के...
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