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वदन्तुशास्त्राणि यजन्तु देवान् कुर्वन्तु कर्माणि भजन्तुदेवता:।

आत्मैक्यबोधेनविना विमुक्तिर्न सिध्यतिब्रम्हशतान्तरेsपि ॥

(कोई व्यक्ति भले ही शास्त्रों की व्याख्या करे, देवताओं का यजन करे, अनेकानेक शुभ कर्म करे अथवा देवताओं का भजन करे, फिर भी जब तक आत्मा और परमात्मा की एकता का बोध नहीं होगा, तब तक सौ कल्पों के बीत जाने पर भी मुक्ति नहीं हो सकती।)

 हरि ओम !

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